Tuesday, December 29, 2009

हम क्या चाहते हैं

पिछले दिनों घर की सीढ़ी से फिसलने के बाद पैर में आई सूजन ने फिर एक बार मम्मी  के दर्द को याद दिलाया. RA के  चलते मम्मी को पैर में सूजन एक आम घटना बन गयी थी हम सबके लिए और जाहिर सी बात हैं की उसके पेन से हम सब अनजान थे या की जान कर भी कुछ हद तक अनजान थे. पर इन सब बातों और दर्द के साथ, जितने के कहीं कम पर मैंने ऑफिस से छुट्टी ले रख्खी है, वो हर रोज ऑफिस और उस बहाने हम सब की सलामती के दरखास्त लिए मंदिर-मंदिर घूमती. भगवन के होने या ना होने के या हो कर भी बेहद निष्ठुर होने की बात में जायें तो उनकी सब दौड़-भाग बेकार जान पड़ती है, जैसा की हम सब को लगती भी थी पर उन सब से अलग उनकी कोशिश उस पूरे दर्द के असर पर प्रश्न अवश्य खड़ा करती है, कि बड़ा दर्द कौन सा, मेरा या तुम्हारा. अपने दर्द के प्रति ऐसी उदासीनता कम से कम ये तो हमें सिखा ही जाती है कि, ये जरूरी नहीं कि हम क्या जानते हैं, जरूरी ये है कि हम क्या चाहते हैं.

1 comment :

Shuchita Chaturvedi said...

pankaj, u r the best...mummy was very lucky to have a son like you. always be the same